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गीता कुछ गंभीर हो गई थी, ‘‘अविनाश! मुझे तुमसे कुछ बातें करनी हैं। तुम्हारे बारे में मन में घुमड़ते कुछ प्रश्नों के उत्तर लेने हैं। चलो, कहीं बैठकर बातें करते हैं।’’
‘‘तो ठीक है। तुम्हारे कॉलेज की कैंटीन में ही बैठकर बातें करते हैं।’’
‘‘अरे! दिमाग खराब हो गया तुम्हारा। वह गर्ल्स कैंटीन है। कोई लड़का वहाँ नहीं जा सकता।’’
वह अपने खिलंदड़ी अंदाज में हँसा, ‘‘चलो, चलकर देखते हैं। हमें कौन रोकता है।’’
गीता बौखला गई, ‘‘अविनाश! तुम वाकई पागल हो। यह भी नहीं सोचा कि लड़कियों से भरी कैंटीन में मुझे तुमसे बातें करते देख पूरे कॉलेज में मेरी बदनामी हो जाएगी।’’
अविनाश खिलखिलाकर हँस पड़ा, ‘‘अरे! कृष्ण की पवित्र गीता हजारों सालों में बदनाम नहीं हुई, तो कैंटीन में अविनाश कृष्ण के साथ चाय पीने से कैसे बदनाम हो जाएगी?’’
‘‘अविनाश! तुम वाकई पागल हो। मैं तुम्हारे साथ कॉलेज कैंटीन में जाने का रिस्क नहीं ले सकती। हाँ, किसी और रेस्टोरेंट में चलने में मुझे एतराज नहीं है।’’
—इसी पुस्तक से
ईर्ष्या-प्रेम, राग-द्वेष के भँवर में फँसे मानव संबंधों को बारीकी से अध्ययन कर लिखी गई अत्यंत रोचक कहानियों का पठनीय संकलन।
About the Author
लगभग पच्चीस वर्षों की पत्रकारिता के पश्चात् साहित्य की ओर उन्मुख आनंद शर्मा ने इतिहास के नूपुर, रसकपूर, एक और भीष्म, नरवद-सुप्यारदे, नानृतम्, माधवी आदि कृतियों के द्वारा राजस्थानी इतिहास के अज्ञात कथानकों को अपनी लेखनी के द्वारा जीवंत किया है। गहन शोध के द्वारा इतिहास की प्रामाणिकता के सीमित घेरों के बीच कथानक की रोमांचक प्रस्तुति आनंद शर्मा की कलम का विशिष्ट कौशल है। उनके उपन्यासों ने हिंदी के ऐतिहासिक उपन्यासों में प्रामाणिकता के नए युग का शुभारंभ किया है।
दो दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्य सम्मान प्राप्त आनंद शर्मा को अमेरिका के यूनाइटेड कल्चरल कन्वेन्शन ने 2004 में इंटरनेशनल पीस प्राइज के साथ अपने बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में चयन कर सम्मानित किया। सन् 2008 में उन्हें राजस्थान साहित्य अकादमी का सर्वोच्च ‘मीरा सम्मान’ भी प्राप्त हुआ। उनके उपन्यासों पर अनेक विश्वविद्यालयों में शोध-कार्य हुए हैं। विक्रमशिला विश्वविद्यालय ने उन्हें मानद डॉक्टरेट प्रदान की है।
संपर्क : 645, किशोर कुंज, किशनपोल बाजार, जयपुर-302002
फोन : 0141-2312222
मो. : 9462312222
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