Cart
Sign In

Sorry! Paradvait Darshan is sold out.

Compare Products
Clear All
Let's Compare!

Paradvait Darshan

This product has been sold out

We will let you know when in stock
notify me

Featured

Highlights

  • ISBN13:9789388393102
  • ISBN10:9388393104
  • Publisher:RIGI PUBLICATION
  • Language:Hindi
  • Author:Dr. Surinder Pal
  • Binding:Paperback
  • Pages:120
  • SUPC: SDL845528549

Description

पराद्वैत एक आगमिक दर्शन है। इसे पराद्वय, ईश्‍वराद्वैत, महाद्वैत आदि विभिन्न नामों से भी जाना जाता है। इस दर्शन के प्रमुख सूत्रधार श्रीमद् अभिनवगुप्ताचार्य हैं। उनके तन्त्रालोक और मालिनीविजयवात्र्तिक आदि ग्रन्थों में पराद्वैत के सिद्धान्त बिखरे हुए हैं। उन्हीं सिद्धान्तों को आधार बनाकर मैंने इस पराद्वय दर्शन की रचना का संकल्प लिया था। यह ग्रन्थ उसी संकल्प का ही परिणाम है। इस दर्शन के अनुसार परमेश्‍वर ही सब जड़ाजड़ रूपों में फैला हुआ है। सब कुछ उन्हीं की महाचेतना का ही स्वरूप है, सत्य है। अतः सब बनना, बिगड़ना उन्हीं की ही लीला है। वही वास्तविक भोक्ता ओर भोग्य हैं। ज्ञाता, ज्ञेय और ज्ञान भी वही है। यह सारा संसार उन्हीं की ही अपनी शक्ति का विस्तार है। वही अपने शक्तिरूपी सामथ्र्य से भिन्न भिन्न रूपों में प्रकट होते हैं। वही जीव को बन्धन और मुक्ति के दाता हैं। इसलिये बन्धन इस दर्शन में अपने स्वरूप का तिरोधान है और मोक्ष अनपे स्वरूप का ही फैलाव है। इस दर्शन के अनुसार परमेश्‍वर की अपनी ही शक्ति भेद, भेदाभेद और अभेद आदि सब रूपों में आकर अपना ही खेल खेलकर स्वयं ही कृतार्थ होती है। यही पराद्वैत है। यही वह वास्तविक दर्शन है जो मनुश्य को अपने सब बन्धनों से सबसे सरल रूप से मुक्त करने में समर्थ है। अतः सांसारिक बन्धनों से मुक्ति चाहने वाले प्रत्येक मनुश्य को इस पराद्वैत दर्शन का अध्ययन मनन जरूरी है। लेखक परिचय इस पुस्कत के लेखक डाॅ. सुरेन्द्र पाल, पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ से एम. ए (हिंदी, संस्कृत) पी एच.डी हैं। लेखक लगभग तीस शोध पत्रों और एक पुस्तक 'कामायनी में तत्त्व मीमांसा' के रचयिता हैं। इस समय सरकारी रिपुदमन काॅलेज नाभा में एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं।

Terms & Conditions

The images represent actual product though color of the image and product may slightly differ.

Quick links