‘धर्म’ ही संस्कृति की नींव है। धर्म की नींव पर खड़ी इमारत यानी संस्कृति। और इस इमारत की सजावट यानी सभ्यता। स्वच्छता यह संस्कृति है, तो इस्त्री (प्रेस) सभ्यता है। अपना रहन-सहन, अपने मकान के आकार-प्रकार, खाने की व्यवस्था, कपड़ों के रंग और रूप, कानून और नियम—ये सारे सभ्यता के विषय हैं। सभ्यता बहिरंग है, संस्कृति अंतरंग है। अंतरंग और बहिरंग में मेल होना चाहिए।
संस्कृति जीवन की ओर देखने का और जीवन जीने का दृष्टिकोण भी होता है। इस दृष्टिकोण के कारण ही संस्कृति-संस्कृति में अंतर आता है। भारतीयों ने जीवन विषयक एक विशेष दृष्टिकोण अपनाया है। उसके आधार पर एक मूल्य व्यवस्था उन्होंने विकसित की है। एक संदर्भ की चौखट खड़ी की है। हर समय, प्रत्येक कृति का ‘धर्म’ की कसौटी पर घिसकर मूल्यांकन नहीं किया जाता। संदर्भ की चौखट देखकर ही उसका मूल्यांकन किया जाता है। अतः संदर्भ चौखट यानी संस्कृति होती है।
व्यक्ति का समाज के साथ संबंध, राजा और प्रजा का संबंध, गुरु और शिष्य का संबंध, पति और पत्नी का संबंध, स्त्री और पुरुष का संबंध, पिता और पुत्र का संबंध, व्यापारी और ग्राहक का संबंध, मालिक और सेवक का संबंध, पड़ोसी और पड़ोसी का संबंध, और अंत में जीवन और मरण का संबंध—ये सारे संस्कृति के विषय हैं। इनमें से कुछ चुने विषयों को इस पुस्तक में संस्पर्श किया है। ये संस्कृति के निकष हैं, जो अंतःकरण की भावना को प्रकट करते हैं।
अपनी संस्कृति के प्रति गौरवबोध जाग्रत् करनेवाली पठनीय पुस्तक।
About the Author
मा.गो. वैद्य
जन्म : 11 मार्च, 1923।
महाराष्ट्र के वर्धा जिले की तरोड़ा तहसील में जन्मे वैद्यजी के बारे में कहा जा सकता है कि जीवन में कुछ भी उन्हें सरलता से नहीं मिला, किंतु जो भी मिला उसे उन्होंने बेहद सहजता से लिया।
नागपुर के मॉरिस कॉलेज से महाविद्यालयी शिक्षा (बी.ए. व एम.ए.) पूरी की और शिक्षणकर्म से जुड़ गए।
संस्कृत के ख्यात शिक्षक जो अनूठी शिक्षण शैली और विषय पर पकड़ के कारण न केवल छात्रों, अपितु विरोधी विचारधारा के लोगों में भी लोकप्रिय रहे। वर्ष 1966 में संघ-संकेत पर नौकरी छोड़ दैनिक तरुण भारत, नागपुर से जुड़े। समाचार चयन की तीक्ष्णदृष्टि और गहरी वैचारिक स्पष्टता के कारण इस क्षेत्र में भी प्रतिभा को प्रमाणिक किया। कालांतर में इसका प्रकाशन करनेवाले नरकेसरी प्रकाशन का नेतृत्व किया।
आगे चलकर पत्रकारिता से राजनीति में जाने का संयोग बना। 1978 से 1984 तक महाराष्ट्र विधान परिषद् में मनोनीत किए गए। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय अधिकारी के रूप में बौद्धिक, प्रचार और प्रवक्ता के रूप में दायित्वों का निर्वहन करनेवाले मा.गो. वैद्य संघ शोधकों, सत्यशोधकों और विरोधी विचारधाराओं के जिज्ञासा समाधान के लिए इस आयु में भी तत्पर और उपलब्ध।