विश्व में अपने वैभव के लिए ख्यातिप्राप्त किसी भी राष्ट्र के उस वैभव की प्राप्ति के लिए किए हुए प्रयत्नों का अध्ययन ऐसे वैभव की चाह रखनेवाले सभी राष्ट्रों को बहुत बोधप्रद होता ही है। ऐसे उपलब्ध सभी अध्ययन (एक बोध) निरपवाद रूप से प्रदान करते हैं कि राष्ट्र की वैभवप्राप्ति, राष्ट्र के भाग्योदय की शिल्पकार सदा ही उस राष्ट्र की सामान्य प्रजा होती है। राष्ट्र के प्राकृतिक संसाधन, विचार एवं तत्त्वज्ञान, राजतंत्र और नेतागण, मान्यताएँ आदि बातें केवल सहायक ही होती हैं, जबकि सामान्य जनमानस का पुरुषार्थ ही राष्ट्र के भाग्योदय का प्रमुख माध्यम होता है। \nस्व की जागृति के बिना व्यक्ति और समाज के पुरुषार्थ का उदय नहीं हो सकता है। हमें अपने राष्ट्र का भूगोल, प्राकृतिक संसाधन, प्राकृतिक सौंदर्य, सांस्कृतिक विशेषताएँ, गौरवशाली इतिहास एवं पूर्वजों के पुरुषार्थ-समर्पण आदि का वास्तविक ज्ञान होने से ही व्यक्ति एवं समाज को विरासत में मिले संसाधन एवं क्षमताएँ वर्तमान स्थिति की कारण बनीं। अपने गुणों की परंपराओं को जानने से ही राष्ट्र के भाग्योदय का पथ तथा दृढ़तापूर्वक उस पथ पर चलकर ध्येय प्राप्त करने का संकल्प, विजिगीषा वृत्ति तथा आत्मविश्वास एवं संबल प्राप्त होता है। \n‘भारत दर्शन’ ग्रंथ में देवस्तुति, नम्र निवेदन, भौगोलिक स्थिति, पुण्य स्थलों का स्मरण, प्राचीन वाङ्मय, धार्मिक पंथ एवं दर्शन, उन्नत विज्ञान, प्राचीन परंपराएँ, भुवनकोश एवं वैदिक-कालीन, रामायणकालीन, महाभारतकालीन विश्व रचना एवं संस्कृति, भारतवर्ष के दिग्विजयी राजाओं एवं राज्यों का विस्तार, संघर्षकालीन इतिहास, ध्येय समर्पित पूर्वजों का स्मरण, वर्तमान भौगोलिक परिदृश्य एवं राजनीतिक राजव्यवस्था, साथ ही अविस्मरणीय उपलब्धियाँ एवं पुनः संकल्प आदि का इस ‘भारत दर्शन’ ग्रंथ में समीचीन रूप से विवेचन उपलब्ध है। \nभारत की प्राचीन एवं अर्वाचीन गौरवशाली परंपराओं एवं वैज्ञानिक स्वप्रमाण तथ्यों का यह सर्वश्रेष्ठ प्रतिपादक ग्रंथ है। वस्तुतः भारत राष्ट्र को समझना है तो ‘भारत दर्शन’ का अध्ययन करना ही होगा।