प्रसिद्ध कथाकार केशव जैसे जीवन के साधक हैं, वैसे ही भाषा के। भाषा के सिद्ध, पीर-फकीर, जहाँ भाषा उनकी चेरी है, उनका आदेश मानने को विवश, पर वह अज्ञेय या निर्मल जैसी नहीं है। केशव की कहानियों में जीवन के सभी रंग हैं, जिन्हें उन्होंने दसों अंगुलियों से पकड़ने की कोशिश की तो वे और भी खरे कथाकार बन गए। पहाड़ी जीवन के राग-रंग का कथा-संगीत गुनगुनाते किसी गायक की तरह, जिसका गाना अच्छा तो बहुत लगता है, लेकिन कोई उसे दोहरा नहीं सकता, क्योंकि यह सिद्धि गहन-गंभीर रियाज से किन्हीं-किन्हीं सर्जकों को ही नसीब होती है। केशव की रचनाओं में कोई दोहराव नहीं है, न कथ्य में, न ही भाषा में। कोई भी विचारधारा उनके कथ्य का निर्धारण नहीं करती, न ही उनकी भाषा पर स्लोगनों का कोई दुष्प्रभाव पड़ा। जीवन के बीचोबीच से वे अपने कथ्य उठाते हैं और परिवेश में घट-अघट रहे जीवन उनकी साधना से सजी-धजी भाषा में रचना का जामा पहन लेते हैं। भाषा में कोई रचाव दिखाई नहीं पड़ता, दिखाई पड़ता है तो सिर्फ उसका वैभव, एकदम पारदर्शी, जैसे थिराए हुए जल में परिवेश के बहुरंगी दृश्य— पहाड़, पेड़, परिंदे, नदी, खड््ड, खेत, सड़क, पगडंडी, मवेशी, बच्चे, स्त्रियाँ और मर्द। सब-के-सब बोलते-बतियाते, कुछ कहते, कुछ सुनते या फिर चुपचाप, संवादलीन।
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केशव
हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा जनपद के गाँव टंबर में हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी के अध्येता तथा तहसीलदार पिता बिहारी लाल के घर अप्रैल 1949 में जनमे केशव में बचपन में ही साहित्यिक संस्कार पनप गए। हमीरपुर में बी.ए. करते समय प्रो. ओ.पी. शर्मा ने केशव के भीतर पनपे सर्जनात्मक संस्कारों को पोषित-पल्लवित किया। चंडीगढ़ में अंग्रेजी से एम.ए. करते समय इंद्रनाथ मदान से आगे बढ़ने की प्रेरणा पाने वाले केशव हर्मन हेस, डी.एच. लॉरेंस और टी.एस. इलियट को पसंद करते हैं। इन्हें शिवालिक के जीवन और परिवेश की मोहक और दाहक छवियाँ एक साथ प्राप्त हुईं, जो इनके गद्य और पद्य में जगह-जगह दिखती हैं। अंग्रेजी में छपे उपन्यास ‘डेमन ट्रैप’ के अलावा हिंदी में उनके ‘हवाघर’ और ‘आखेट’ जैसे उपन्यास चर्चित हुए। कहानी-संग्रह ‘फासला’, ‘अलाव’ और ‘रक्तबीज’ के साथ कविता-संग्रह ‘धूप के जल में’, ‘शहर का दुख’ , ‘अलगाव’, ‘एक सूनी यात्रा’, ‘धरती होने का सुख’ और ‘ओ पवित्र नदी’ छपे हैं।
अरसे तक हिमाचल सरकार के प्रकाशन विभाग में संपादक व निदेशक जैसे पदों पर रहते हुए ‘शिखर’ के संपादक-संचालक रहे। आजकल ‘हद-बेहद’ उपन्यास के सृजन में संलग्न हैं।