सुभाषचंद्र बोस की ‘भारत की खोज’, जवाहरलाल नेहरू की तुलना में उनके जीवन में काफी पहले ही हो गई, यानी उन दिनों वे अपनी किशोरावस्था में ही थे। वर्ष 1912 में पंद्रह वर्षीय सुभाष ने अपनी माँ से पूछा था, ‘स्वार्थ के इस युग में भारत माता के कितने निस्स्वार्थ सपूत हैं, जो अपने निजी स्वार्थ को त्याग कर इस आंदोलन में हिस्सा ले सकते हैं? माँ, क्या तुम्हारा यह बेटा अभी तैयार है?’’ 1921 में भारतीय सिविल सेवा से त्यागपत्र देकर वह आजादी की लड़ाई में कूदने ही वाले थे कि उन्होंने अपने बड़े भाई शरत को पत्र लिखा, ‘‘केवल बलिदान और कष्ट की भूमि पर ही हम अपने राष्ट्र का निर्माण कर सकते हैं।’’ दिसंबर 1937 में बोस ने अपनी आत्मकथा के दस अध्याय लिखे, जिसमें 1921 तक की अपनी जीवन का वर्णन किया था और ‘माई फेथ-फिलॉसोफिकल’ शीर्षक का एक चिंतनशील अध्याय भी था। सदैव ऐसा नहीं होता कि जीवन के बाद के समय में लिखे संस्मरणों को शुरुआती, बचपन के दिनों की प्राथमिक स्रोत की सामग्री के साथ पढ़ा जाए।
बोस के बचपन, किशोरावस्था व युवावस्था के दिनों के सत्तर पत्रों का एक आकर्षक संग्रह इस आत्मकथा को समृद्ध बनाता है। इस प्रकार यह ऐसी सामग्री उपलब्ध कराता है, जिसकी सहायता से उन धार्मिक, सांस्कृतिक, नैतिक, बौद्धिक तथा राजनीतिक प्रभावों का अध्ययन किया जा सकता है, जिनसे भारत के इस सर्वप्रथम क्रांतिधर्मी राष्ट्रवादी के चरित्र और व्यक्तित्व का निर्माण हुआ।
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नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारत के स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी सेनानी थे। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए उन्होंने जापान के सहयोग से गठित ‘आजाद हिंद फौज’ का नेतृत्व किया था। उनके द्वारा दिया गया ‘जय हिंद’ का नारा भारत का राष्ट्रीय नारा बन गया है। ‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूँगा’ का जोशीला नारा भी उन्हीं ने दिया था, जो उस समय युवाओं को आंदोलित कर देता था।
नेताजी ने 5 जुलाई, 1943 को सिंगापुर के टाउन हॉल के सामने ‘सुप्रीम कमांडर’ के रूप में सेना को संबोधित करते हुए ‘दिल्ली चलो!’ का नारा दिया और जापानी सेना के साथ मिलकर ब्रिटिश व कॉमनवेल्थ सेना से बर्मा सहित इंफाल और कोहिमा में एक साथ जमकर मोर्चा लिया।
अपने ओजस्वी आह्वान ओर चामत्कारिक वाक्कला से उस समय के जनमानस को झकझोर दिया। अपने तरीके से भारत को आजाद कराने के लिए उन्होंने अपना सर्वस्व मातृभूमि पर निछावर कर दिया। नेताजी सुभाष का नाम जुवां पर आते ही सीना शौर्य और साहस गर्वित हो जाता है।
स्वर्गीय शिशिर कुमार बोस नेताजी रिसर्च ब्यूरो, कोलकाता के निदेशक और इंस्टीट्यूट ऑफ चाइल्ड हेल्थ, कोलकाता के अध्यक्ष थे।
सुगत बोस हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के इतिहास विभाग में महासागरीय इतिहास मामलों के प्रोफेसर हैं।